मुद्दों का सौहार्दपूर्ण समाधान

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भारत और श्रीलंका ने पहली बार सैन्य क्षेत्र में गहन सहयोग के लिए ढांचे को संस्थागत बनाने के संबंध में शनिवार को रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए।
कोलंबो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के बीच वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने कुल सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए। मोदी-दिसानायके वार्ता में 10 से ज्यादा ठोस परिणाम निकले और सबसे महत्त्वपूर्ण तो यह कि दोनों देश सैन्य क्षेत्र में गहन सहयोग को राजी हुए हैं।
बेशक, यह फैसला दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इसलिए भी कि यह समझौता श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षा सेना के हस्तक्षेप के करीब 35 साल बाद हुआ है।
भारत के लिए मोदी का श्रीलंका दौरा इसलिए भी सफल कहा जा सकता है कि दिसानायके ने प्रधानमंत्री मोदी को आासन दिया है कि श्रीलंका अपने भूभाग का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत के सुरक्षा हितों के प्रतिकूल कदमों के लिए नहीं होने देगा।
जब-जब पड़ोसी चीन श्रीलंका के साथ दोस्ताना होता है, तब-तब भारत की पेशानी पर चिंता की लकीरें उभरने लगती हैं। लेकिन अब श्रीलंका से स्पष्ट आासन मिलने से भारत को बड़ी राहत का अहसास हुआ है।
दरअसल, दोनों पड़ोसी देशों बीच ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और आत्मीयता से भरे संबंध रहे हैं, दोनों देशों की साझा बौद्ध विरासत है, दोनों की सुरक्षा एक दूसरे से जुड़ी हुई है, और दोनों परस्पर निर्भर कहे जा सकते हैं। दिसानायके इस बात से वाकिफ हैं।
संभवत: यही कारण रहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना।
मोदी को भी उन्होंने अपना पहला विदेशी मेहमान बनाया और उन्हें श्रीलंका के सर्वोच्च सम्मान ‘मित्र विभूषणÓ से भी नवाजा। भारत भी श्रीलंका की मित्रता को खासा तवज्जो देता है, और इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि 2014 के बाद से प्रधानमंत्री मोदी का यह चौथा श्रीलंका दौरा था।
चाहे 2019 का आतंकवादी हमला हो, कोविड महामारी हो या हाल में आया आर्थिक संकट हो, हर कठिन परिस्थिति में भारत ने श्रीलंका की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है। श्रीलंका हमारी ‘पड़ोसी पहलेÓ नीति और ‘महासागरÓ दृष्टिकोण से भी हमारे लिए विशेष स्थान रखता है।
अलबत्ता, श्रीलंका में तमिलों की आकांक्षाओं और भारतीय मछुआरों के श्रीलंका के जल क्षेत्र में पकड़े जाने जैसे विवादास्पद मुद्दे हैं। उम्मीद है कि इन मुद्दों का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने में भी दोनों पड़ोसी देश सफल होंगे।

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